हमने उसे देखा संगम घाट के पथ पर, महाकुंभ में माला बेचने वाली लड़की

रील वालों की कुटिल नजरों से छली गई, बेचारी महाकुंभ छोड़कर चली गई। मेहनत कर कुछ कमाती थी, बेचकर माला, घर चलाती थी,

हमने उसे देखा संगम घाट के पथ पर, महाकुंभ में माला बेचने वाली लड़की
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रील वालों की कुटिल नजरों से छली गई,
बेचारी महाकुंभ छोड़कर चली गई।

मेहनत कर कुछ कमाती थी,
बेचकर माला, घर चलाती थी,

कुछ सौदागरों की नजर पड़ गई,
वह सीधी-सादी शरम से गड़ गई ।

गंगा यमुना सरस्वती के किनारे,
बेटी को खिलौना बना गए प्यारे।

संगम के किनारे हो रहा था खेला,
आध्यात्म के साथ कामांध का मेला।

कोई नैन देखता, कोई चेहरा,
कोई बालों का रंग सुनहरा।

सबको पसंद है न, दूसरों की खेती,
हर बेटी में नहीं ढूंढ़ते अपनी जैसी बेटी।

ममता रोने लगी,आपा खोने लगी,
यूट्यूबर संस्कृति यहां बिष बोने लगी।

संस्कृति शरमाने लगी,उबकियां खाने लगी,
बेटी की फोटो को वायरल कराने लगी।

अब तो संगम तट पर भद्द हो गई,
धृष्टता व बेशर्मी की तो हद हो गई।

घिर गई थी वह कुछ चांडाल में,
बार बार छुप रही संतों के पांडाल में।

लोग थे उसकी सुंदरता की तलाश में,
किसी को रुचि नहीं उसकी भूख-प्यास में।

रील वालों ने रीयल को फूंक दिया,
आध्यात्मिक मर्यादा पर थूक दिया।

मोनालिसा कमेंट, व्यूज़ के तेल में तली गई,
बेचारी महाकुंभ छोड़कर चुपचाप चली गई।

~ सुरेश मिश्र

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