Up News : किन्नर अखाड़ा: संघर्ष, परंपरा और महाकुंभ 2025 में बढ़ती भूमिका

किन्नर अखाड़े में घमासान: ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर बनाए जाने पर विवाद, आखिर किन्नर अखाड़ा का अस्तित्व खत्म होने की कगार पर क्यों है?

किन्नर अखाड़ा: संघर्ष, परंपरा और महाकुंभ 2025 में बढ़ती भूमिका

महाकुंभ 2025 में किन्नर अखाड़ा एक बार फिर सुर्खियों में है। यह अखाड़ा, जो सनातन परंपरा में नया लेकिन महत्वपूर्ण स्थान रखता है, इस बार एक विवाद के चलते चर्चा में आ गया है। अभिनेत्री ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर का पद देने के बाद आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी और किन्नर अखाड़े के संस्थापक ऋषि अजय दास के बीच मतभेद उभर आए।

किन्नर अखाड़े की स्थापना और संघर्ष

किन्नर समाज को धार्मिक परंपराओं में उचित स्थान दिलाने के लिए 13 अक्टूबर 2015 को किन्नर अखाड़े की स्थापना हुई। इसकी नींव रखने में आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की अहम भूमिका रही। हालांकि, यह राह आसान नहीं थी।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2014 में ट्रांसजेंडरों को कानूनी पहचान दिए जाने के बाद ही यह संभव हो सका कि किन्नर समाज अपनी धार्मिक आस्था को संगठित रूप में प्रस्तुत कर सके। 2016 के उज्जैन सिंहस्थ कुंभ में किन्नर अखाड़े को पहली बार आधिकारिक रूप से शामिल किया गया, हालांकि, उस समय भी शाही स्नान को लेकर विवाद हुआ था। बाद में जूना अखाड़े के सहयोग से इस अखाड़े ने सनातन धर्म में अपना स्थान पक्का किया।

महाकुंभ 2025: ममता कुलकर्णी विवाद

महाकुंभ 2025 में एक नई बहस छिड़ गई जब अभिनेत्री ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर का पद देने की घोषणा हुई। इस फैसले पर किन्नर अखाड़े के भीतर ही विवाद उठ खड़ा हुआ। अखाड़े के संस्थापक ऋषि अजय दास ने आरोप लगाया कि इस निर्णय में पारदर्शिता नहीं थी और यह सनातन परंपराओं के अनुरूप नहीं है।
दूसरी ओर, लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने इस पर पलटवार करते हुए कहा कि ऋषि अजय दास को 2017 में ही अखाड़े से हटा दिया गया था और उनके पास कोई अधिकार नहीं कि वे इस प्रकार के निर्णयों को चुनौती दें। विवाद बढ़ने के बाद अंततः ममता कुलकर्णी और लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी, दोनों को पद से हटा दिया गया।

किन्नर अखाड़े की परंपराएँ और धार्मिक पहचान

किन्नर अखाड़ा शैव संप्रदाय से जुड़ा हुआ है और इसके इष्ट देव अर्धनारीश्वर तथा इष्ट देवी बहुचरा माता मानी जाती हैं। बहुचरा माता का प्रसिद्ध मंदिर गुजरात के मेहसाणा में स्थित है। कई किन्नर संत माँ काली और कामाख्या माता की भी पूजा करते हैं।
यह अखाड़ा अन्य पारंपरिक अखाड़ों की तरह ही सनातन धर्म के नियमों का पालन करता है। यहाँ साधु और साध्वी दोनों होते हैं, जो अपने गुरु की दीक्षा के अनुसार जीवन यापन करते हैं। कुछ किन्नर अखाड़े में शामिल होने के बाद पुरुषत्व अपनाते हैं और साधु कहलाते हैं, जबकि कुछ स्त्रीत्व अपनाकर साध्वी बनती हैं।

किन्नर अखाड़े की वैश्विक महत्वाकांक्षा

लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने घोषणा की है कि वे किन्नर अखाड़े को वैश्विक स्तर पर पहुँचाने का प्रयास कर रही हैं। अमेरिका, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, हॉलैंड और रूस समेत कई देशों में ट्रांसजेंडर समुदाय से जुड़े लोग इस अखाड़े के साथ जुड़ना चाहते हैं।

बॉक्स या इनसेट में किन्नर अखाड़े की विशेषताएँ:

• इसकी स्थापना 13 अक्टूबर 2015 को उज्जैन में हुई।
• इसका ध्वज सफेद रंग का होता है, जिसका किनारा सुनहरा होता है।
• यह जूना अखाड़े के साथ जुड़ा हुआ है, लेकिन कुछ संत इसे 14वां अखाड़ा मानते हैं।
• अखाड़े में नागा संन्यासी भी शामिल होते हैं।
• महामंडलेश्वर बनने के लिए वेद-पुराण और वेदांत का ज्ञान अनिवार्य होता है।

यह अखाड़ा एक लंबे संघर्ष का प्रतीक है:

इस बार प्रयागराज कुंभ में किन्नर अखाड़े का कैंप सेक्टर 16 में स्थित है, जबकि अन्य अखाड़े सेक्टर 12 में हैं। यह दर्शाता है कि भले ही किन्नर अखाड़ा एक नई परंपरा को आगे बढ़ा रहा हो, लेकिन अभी भी इसे पारंपरिक अखाड़ों के समकक्ष पूरी तरह से नहीं माना जा रहा है। महाकुंभ 2025 में किन्नर अखाड़ा भले ही विवादों के कारण चर्चा में है, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व और समाज में इसकी बढ़ती भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। यह अखाड़ा एक लंबे संघर्ष का प्रतीक है, जो किन्नर समुदाय को धार्मिक पहचान दिलाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित हो रहा है।

लेख : भारत भूषण, 
राष्ट्रीय न्यूज नेटवर्क

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button