रिवालसर झील दिन प्रतिदिन अपने अस्तित्व को खोती हुई

 रिवालसर एक त्रिवेणी धर्म स्थली संगम है जिसके लिए देश के कोने कोने से अपनी आस्था को लेकर यहाँ पवित्र रिवालसर झील को देखने के लिए आते हैं। रिवालसर झील की दुर्दशा ऐसी है की जिसकी सुध ना कोई विभाग ना लोकल प्रसासन ना ही सरकार इसकी सुध ले रही है यह दिन प्रतिदिन अपने अस्तित्व को खो रही है। पवित्र रिवालसर झील का डेवलपमेंट एक्शन ग्रुप के द्वारा आर टी आई के माध्यम से यह पता लगा कि रिवालसर झील का मुख्य संरक्षक वन विभाग है। जो विकास नगर से लेकर हवानी गलू तक वन विभाग का क्षेत्र है। इसमें हजारों कि संख्या में डम्पीग की जाती जो कि बरसात के मौसम में बह कर झील के अंदर वह मलबा झील में सीधा प्रवेश कर जाता है जिससे दिन प्रतिदिन झील कि गहराई कम होती जा रही है। रिवालसर झील परिसर में लोक निर्माण विभाग द्वारा गत महीने पहले झील परिसर परिक्रमा में सड़क में बजरी एवं मिट्टी बिछाई गयी जिसका मलबा बरसात की पहली बारिस में उक्त मलवे ने अपना रूद्र रूप दिखाया और उक्त मलबा नाले के तटबन्धों एवं पक्की नालियों को तोड़ता हुआ सीधा झील में प्रवेश कर गया। जल शक्ति विभाग के द्वारा जो सिबरेज की लाइने बिछाने के लिए सड़क की खुदाई तो करता है परन्तु उसे समय पर ठीक कराने की जहमत नहीं उठाता। रिवालसर सिबरेज योजना विशेष तौर पर रिवालसर झील के संरक्षण एवं विकास हेतु शुरू की गयी थी परन्तु विभागीय कार्यप्रणाली के कारण यह योजना रिवालसर झील के प्रदूषण का मुख्य कारण बनती जा रही है। रिवालसर झील की दुर्दशा एवं प्रदूषण के लिए जिमेवार किसे ठहराया जाये स्थानीय प्रशासन को,वन विभाग को, लोक निर्माण विभाग को, प्रशासन या सरकार को।

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