मोदी ने बेडू फल के इस्तेमाल एवं हिमाचली जीवन शैली को सराहा

नयी दिल्ली                                                प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहाड़ी अंजीर के नाम से मशहूर उत्तराखंड के जंगली फल बेडू को आधुनिक बाजार के अनुरूप इस्तेमाल किए जाने तथा हिमाचल के आदिवासी जीवन शैली में पशुओं को ठंड से बचाने की परंपरागत शैली को बेहद अनुकरणीय बताते हुए इसकी सराहना की है। मोदी ने रविवार को रेडियो से प्रसारित अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कहा कि पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में कई प्रकार के औषधीय और वनस्पतियाँ पाई जाती हैं जो सेहत के लिए बहुत फायदेमंद हैं। उन्हीं में से एक फल बेडू है जिसे हिमालयन फिग के नाम से भी जाना जाता है। इस फल में, खनिज और विटामिन भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं। लोग, फल के रूप में तो इसका सेवन करते ही हैं, साथ ही कई बीमारियों के इलाज में भी इसका उपयोग होता है।

उन्होंने कहा “इस फल की इन्ही खूबियों को देखते हुए अब बेडू के जूस, इससे बने जैम, चटनी, अचार और इन्हें सुखाकर तैयार किए गए ड्राई फ्रूट को बाजार में उतारा गया है। पिथौरागढ़ प्रशासन की पहल और स्थानीय लोगों के सहयोग से बेडू को बाजार तक अलग-अलग रूपों में पहुँचाने में सफलता मिली है। बेडू को पहाड़ी अंजीर के नाम से ब्रांडिंग करके ऑनलाइन मार्किट में भी उतारा गया है। इससे किसानों को आय का नया स्त्रोत तो मिला ही है, साथ ही बेडू के औषधीय गुणों का फायदा दूर-दूर तक पहुँचने लगा है।”

उन्होंने एक और पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के एक श्रोता रमेश के पत्र का जिक्र करते हुए कहा ” उन्होंने लिखा कि पहाड़ों पर बस्तियाँ भले ही दूर-दूर बसती हों लेकिन लोगों के दिल एक- दूसरे के बहुत नजदीक होते हैं। वाकई पहाड़ों पर रहने वाले लोगों के जीवन से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। पहाड़ों की जीवनशैली और संस्कृति से हमें पहला पाठ यह सीखने को मिलता है कि हम परिस्थितियों के दबाव में ना आएं तो आसानी से उन पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। दूसरा, हम कैसे स्थानीय संसाधनों से आत्मनिर्भर बन सकते हैं। स्पीती के एक जनजातीय क्षेत्र में इन दिनों मटर तोड़ने का काम चलता है। पहाड़ी खेती मेहनत भरा और मुश्किल होता है लेकिन यहाँ, गाँव की महिलाएं इकट्ठा होकर, एक साथ मिलकर, एक-दूसरे के खेतों से मटर तोड़ती हैं। इस काम के साथ-साथ महिलाएं स्थानीय गीत ‘छपरा माझी छपरा’ ये भी गाती हैं। यानी यहाँ आपसी सहयोग भी लोक-परंपरा का एक हिस्सा है। स्पीती में स्थानीय संसाधनों के सदुपयोग का भी बेहतरीन उदाहरण मिलता है। स्पीती में किसान जो गाय पालते हैं, उनके गोबर को सुखाकर बोरियों में भर लेते हैं। जब सर्दियाँ आती हैं, तो इन बोरियों को गाय के रहने की जगह में, जिसे यहाँ खूड़ कहते हैं, उसमें बिछा दिया जाता है। बर्फबारी के बीच, ये बोरियाँ, गायों को, ठंड से सुरक्षा देती हैं। सर्दियाँ जाने के बाद, यही गोबर, खेतों में खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यानी, गोबर से पशुओं की सुरक्षा और खेतों के लिए खाद भी।”

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