बेनामी लेनदेन कानून: सुप्रीम कोर्ट ने दंडात्मक प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित किया

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि बेनामी लेनदेन कानून में 2016 के संशोधन को पिछली तारीख से लागू नहीं किया जा सकता है।

मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 97-पृष्ठों के अपने फैसले में 1988 के बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम के उन प्रावधानों को रद्द कर दिया, जिनमें बेनामी लेनदेन में शामिल लोगों के लिए तीन साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों का प्रावधान था।

शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया कि अधिकारी 2016 के अधिनियम, यानी 25 अक्टूबर, 2016 के लागू होने से पहले किए गए लेनदेन के लिए आपराधिक अभियोजन या जब्ती की कार्यवाही शुरू या जारी नहीं रख सकते हैं।

पीठ की ओर से न्यायमूर्ति रमना ने लिखा,“ऐसे सभी अभियोग या जब्ती की कार्यवाही को रद्द कर दिया जाएगा।”

सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार की इस दलील को खारिज कर दी कि पूर्व-संशोधन अधिनियम ने पहले से ही बेनामी लेनदेन को कानून के विपरीत मान्यता दी थी, और इसलिए कोई नया या वास्तविक कानून नहीं बनाया जा रहा था और प्रक्रियात्मक कानून को पूर्वव्यापी रूप से लागू किया जा सकता है।

वर्ष 2016 के संशोधन ने नकद हस्तांतरण, संपत्ति सौदों और शेयर जारी करने जैसे कई लेनदेन को इसके दायरे में ला दिया था। संशोधित कानून में दंड के लिए कड़े प्रावधान दिए थे। यहां तक ​​कि आयकर विभाग ने एक नवंबर 2016 से पहले किए गए लेनदेन के संबंध में भी इन संशोधित प्रावधानों को लागू किया था।

शीर्ष अदालत ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार की अपील यह फैसला दिया, जिसमें कहा गया था कि नए कानून को पूर्वव्यापी (पिछली तारीख से) रूप से लागू नहीं किया जा सकता है।

केंद्र सरकार की दलील थी कि पिछली तारीख से लागू करना गलत नहीं था।

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