पारंपरिक ज्ञान पर ध्यान केंद्रित कर समुदायों को शामिल करें: विशेषज्ञ

आपदाओं को पूरी तरह से नहीं रोका जा सकता है लेकिन जोखिम को कम करने के लिए उपयुक्त उपायों और योजना की आवश्यकता है। स्थानीय समाधान और कार्यान्वयन रणनीति पर तीन दिवसीय हिमसंवाद: ट्रांस-हिमालयन सम्मेलन के दौरान ‘जलवायु संबंधी आपदाओं के लिए हिमालय समुदायों की अनुकूलन क्षमता को मजबूत करना’ विषय पर तकनीकी सत्र के दौरान विशेषज्ञों द्वारा व्यक्त किए गए यह कुछ विचार रहे।सेवा इंटरनेशनल, इंडियन इकोलॉजिकल सोसायटी और प्राकृतिक कृषि खुशहाल किसान योजना के सहयोग से डॉ. यशवंत सिंह परमार औदयानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी में यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है।

हिमाचल प्रदेश के केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ए के महाजन ने सड़कों के अवैज्ञानिक तरीके से चौड़ा करने पर रोक लगाने का आह्वान किया और कहा कि इस तरह के निर्माण को आपदा से पहले रोकने की जरूरत है। प्रोफेसर महाजन ने भूकंप रोधी इमारतों के विकास पर ध्यान केंद्रित किया और घरों के बीच न्यूनतम 3-5 मीटर का अंतर और केवल भारी चट्टानों वाली भूमि पर बहुमंजिला इमारतों के निर्माण का सुझाव दिया।

प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन और आपदा न्यूनीकरण केंद्र, हैदराबाद के प्रमुख प्रो. रवींद्र एस. गवली ने कहा कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन से भूजल की कमी, भूस्खलन और बाढ़ के जोखिम की संभावना बढ़ जाएगी। प्रो. गवली ने कहा कि पेयजल सेवाएं, कृषि, स्वास्थ्य और विकलांग लोग, स्वच्छता क्षेत्रों पर इनसब का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने वनीकरण और पारिस्थितिकी तंत्र आधारित आवंटन का सुझाव दिया।

नेपाल की त्रिभुवन विश्वविद्यालय से डॉ. शोभा श्रेष्ठ ने कहा कि स्थानीय और जमीनी स्तर पर ध्यान देने और जलवायु संबंधी खतरों के निपटने के लिए निकट और दीर्घकालिक योजना बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि क्योंकि विभिन्न आय स्तर हैं, इसलिए स्थानीय आपदा प्रबंधन तकनीकों के साथ विभिन्न स्थानों के लिए अलग लागत प्रभावी उपायों की मदद से भेद्यता परीक्षण किया जाना चाहिए। सेवा इंटरनेशनल के कार्यकारी निदेशक अभिषेक कुमार ने समुदाय-आधारित संस्था और समुदाय-आधारित आजीविका के माध्यम से सामुदायिक विकास की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।

प्रवासी और ट्रांस-हिमालय क्षेत्र पर आयोजित दूसरे सत्र में मॉरीशस के पूर्व राजदूत अनूप मुद्गल, जो चर्चा में वर्चुअल माध्यम से शामिल हुए थे, ने हिमालय में सतत विकास और जलवायु परिवर्तन पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि गांवों के साथ-साथ शहरों में भी लोग एक अच्छा और बेहतर जीवन चाहते हैं। उन्होंने विकास और धन सृजन पर जोर दिया क्योंकि यह जीवन स्तर को बढ़ाता है। उन्होनें कहा कि हम स्थिरता के क्षेत्र में विकसित नहीं हो रहे है क्योंकि पृथ्वी की वहन क्षमता का अधिक उपयोग किया जा रहा है। आज की तकनीक ने मानव शक्ति पैदा की है और समस्याओं का समाधान किया है लेकिन प्राकृतिक संसाधनों और उनकी क्षमता का दोहन किया है। इसलिए, हमें सतत विकास पर ध्यान देने की आवश्यकता है और संसाधनों का इष्टतम उपयोग करना चाहिए।

उन्होंने पारिस्थितिकी तंत्र की क्षमता को स्कैन करने और हिमालय के सतत विकास के लिए इसे पुनर्व्यवस्थित करने का आग्रह किया। उन्होंने जैविक और प्राकृतिक उत्पादों की मांग के बारे में भी बात की और सुझाव दिया कि हिमालय क्षेत्र उत्पादन का एक अद्भुत स्रोत हो सकता है। मुद्गल ने वैज्ञानिक ज्ञान के साथ साथ पारंपरिक ज्ञान पर ध्यान केंद्रित करके समुदायों को शामिल करने का आह्वान किया।

आई॰डी॰एस॰ए के रिसर्च फेलो निहार रंजन ने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और हिमालय क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पलायन को संबोधित करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय क्षेत्र से निकलने वाले आजीविका संसाधन और नदियां प्रभावित हो रही हैं। उन्होंने आगे कहा कि हिमालय क्षेत्र में पलायन का प्रमुख मुद्दा सुविधाओं, बुनियादी ढांचे, शिक्षा और आर्थिक अवसरों की कमी है, जिसे हल किया जा सकता है यदि लोग अपने स्थानों से पलायन नहीं करे। रंजन ने प्रवासी भारतीयों से वापस आकर विरासत को बनाए रखने और स्थिरता के लिए संसाधन जुटाने का आह्वान किया।

द इमेजइंडिया इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष रोबिंदर सचदेव ने भारत और अन्य हिमालय देशों को प्रदर्शित करने और लोगों को इसकी संस्कृति के बारे में शिक्षित करने के लिए विभिन्न देशों से सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों का सुझाव दिया। एस॰आई॰डी॰एच के संस्थापक पवन गुप्ता का विचार था कि समाज को आगे बढ़ाने और हमारी संस्कृति और इतिहास को संरक्षित करने के लिए लोगों की विकास की धारणा को बदलना होगा। उन्होंने लोगों से अपनी विरासत पर गर्व करने और वैज्ञानिक और प्राचीन पारंपरिक तरीकों को एकीकृत करने का भी आग्रह किया। गुप्ता ने कहा कि एक संस्कृति के पारंपरिक सदस्यों के साथ संवाद करने के लिए, सभी को अपनी संचार शैली बदलने की जरूरत है।

विशेषज्ञों ने आपदाओं की बारंबारता स्थापित करने के लिए और गैर-वैज्ञानिक बुनियादी ढांचे और गैर-कृषि गतिविधियों पर जांच के लिए अध्ययन का आह्वान किया, जो आर्थिक लाभ के लिए हिमालय पर प्रभाव डाल सकते हैं। सम्मेलन के दौरान, हिमालय की संरक्षण करने की आवश्यकता पर आम सहमति रही और अन्य संगठनों के साथ सहयोग की आवश्यकता पर भी बल दिया गया। इसके अतिरिक्त, हिमालयी क्षेत्र को विशेष कार्यक्रम शुरू करने और कुछ आर्थिक मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है क्योंकि भूटान और नेपाल के प्रयासों के बावजूद, उनका छोटा आकार महत्वपूर्ण प्रभाव डालने से एक बाधा रहा है।

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