जीत न मिलने पर चार नेताओं के राजनीतिक जीवन को खतरा, जानिए क्यों..?
नाहन, 20 नवंबर: सिरमौर में विधानसभा चुनाव का नतीजा चार नेताओं का भविष्य तय करेंगे। 8 दिसंबर की दोपहर तक यह साफ हो जाएगा कि इन नेताओं की राजनीति दिशा क्या होगी। इनमें नाहन से कांग्रेस प्रत्याशी अजय सोलंकी, शिलाई से भाजपा के बलदेव तोमर, पांवटा साहिब से कांग्रेस प्रत्याशी किरनेश जंग के अलावा कांग्रेस से बगावत कर मैदान में उतरे गंगूराम मुसाफिर शामिल हैं। अगर ये नेता चुनाव हारे तो भविष्य में इनकी राजनीति के समीकरण गड़बड़ा जाएंगे। जीत न मिलने के बावजूद इन नेताओं को केवल चुनाव की परफॉर्मन्स संजीवनी दे सकती है।
बलदेव तोमर…
हालांकि, भाजपा के भीतर शिलाई विधानसभा क्षेत्र से नया प्रत्याशी उतारने का विचार भी था, लेकिन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अपने दोस्त बलदेव तोमर को ही टिकट दिलवाया। यही नहीं, बलदेव तोमर के लिए जयराम सरकार ने व्यक्तिगत तौर पर विधानसभा क्षेत्र में एड़ी-चोटी का जोर लगा रखा था। ताकि बलदेव चुनाव जीते। यहां तक की इलाके के सबसे संवेदनशील मुद्दे “ट्राइबल स्टेटस” को भी टच किया गया। 2017 में बलदेव तोमर चुनाव हार गए थे। हालांकि, 2012 में कांटे की टक्कर में कांग्रेस प्रत्याशी हर्षवर्धन चौहान को हराने में सफल रहे थे। मैदान में तीन अन्य प्रत्याशियों के होने की वजह से बलदेव तोमर विधानसभा की दहलीज़ को पार कर गए थे। 2007 में बलदेव सिंह तोमर को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। यानी, अब तक बलदेव तोमर ने 3 में से 1 चुनाव जीता है, यह चौथा चुनाव है। इसमें भी हार मिली तो निश्चित तौर पर राजनीतिक भविष्य पर संकट होगा
अजय सोलंकी..
कांग्रेस ने 2017 में प्रदेश निर्माता डॉ वाईएस परमार के बेटे कुश परमार का टिकट काट कर राजपूत बिरादरी से ही अजय सोलंकी को मैदान में उतारा था। सोलंकी भाजपा के दिग्गज नेता डॉ राजीव बिंदल से 3919 मतों से हार चुनाव हार गए थे। 2022 में हालांकि कांग्रेस के सामने टिकट के तलबगारों की लंबी सूची थी, लेकिन कांग्रेस ने इस बार भी अजय सोलंकी पर ही दांव खेला है। लगातार दूसरी बार हारने की स्थिति में सोलंकी के राजनीतिक भविष्य पर भी सवालिया निशान लग जाएंगे। यह अलग बात है कि सोलंकी के समर्थक जीत को लेकर आश्वस्त हैं। नाहन विधानसभा क्षेत्र में भी 8 दिसंबर के नतीजे का बेसब्री से इंतजार हो रहा है। सोलंकी के पाले में एक पॉजिटिव बात ये है कि उम्र 55 से नीचे है।
किरनेश जंग…
कांग्रेस ने पांवटा साहिब विधानसभा क्षेत्र में 2012 में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीतने वाले किरनेश जंग को 2017 में भी पार्टी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतारा था, लेकिन जंग भाजपा के सुखराम चौधरी से 11 फीसदी से भी अधिक अंतर से चुनाव हार गए थे। चौधरी को 36,011 वोट प्राप्त हुए थे, जबकि के किरनेश जंग 23,392 मतों पर सिमट गए थे। कांग्रेस ने 2022 में भी किरनेश जंग पर ही दांव खेला है।
इस निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस कई टुकड़ों में बंटी हुई थी। हालांकि इस बार गुटबाजी नजर नहीं आई, लेकिन चुनाव के अंतिम समय पर कांग्रेस नेता हरप्रीत सिंह ने भाजपा का दामन थाम लिया था। कांग्रेस के खेमे में टिकट के तलबगारों की कोई कमी नहीं थी। लगातार दूसरा चुनाव हारने की स्थिति में जंग की सियासी जमीन खिसक सकती है। जंग 1993 से लगातार पांवटा साहिब की राजनीति में सक्रिय रहे, लेकिन चार में से जंग को तीन बार हार का सामना करना पड़ा। 29 साल से लगातार चुनाव लड़ रहे है। इस बार हारे तो सियासी जीवन का अंत हो सकता है।
गंगूराम मुसाफिर…
वैसे तो राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता, लेकिन मौजूदा समय में उम्रदराजी भी एक अहम बात हो चुकी है। वैसे तो गंगूराम मुसाफिर ने लगातार सात बार पच्छाद निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीतकर एक रिकॉर्ड कायम किया था। लेकिन इसके बाद लगातार तीन विधानसभा चुनाव के अलावा एक मर्तबा लोकसभा उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा। पच्छाद से कांग्रेस ने मुसाफिर का टिकट काटा तो वह बगावत पर उतर आए। विधानसभा का चुनाव कांग्रेस के बगावती के तौर पर लड़ रहे हैं।
8 दिसंबर को चुनाव जीते तो सियासी सफर जारी रख सकेंगे, अन्यथा लगातार चुनाव जीतकर रिकॉर्ड बनाने वाले मुसाफिर के राजनीतिक सफर की एक अफसोस जनक समाप्ति होगी। कांग्रेस से पच्छाद निर्वाचन क्षेत्र के उपचुनाव में मुसाफिर को अंतिम मौका दिया था।