जल संरक्षण में प्राचीन पोखरों की है विशेष भूमिका….प्रदीप कुमार(JBT राजकीय प्राथमिक पाठशाला लल्याणा)
वर्तमान समय में पूरे विश्व में पीने योग्य स्वच्छ जल की उपलब्धता एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है मानव की विकास की अंधी दौड़ ने जल संरक्षण की प्राकृतिक एवं पारंपरिक विधियों को भुला दिया हैl ऐसा कहा जाता है कि अगर तीसरा विश्व युद्ध हुआ तो वह है जल के लिए होगा l जल संसाधन दिन प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं। नदी नाले दूषित किये जा रहे हैं। पीने योग्य साफ पानी की उपलब्धता लगातार घटती जा रही है। आए दिन हम अखबारों में पढ़ते हैं या खबरों में सुनते व देखते हैं कि पानी की किल्लत से लोगों को खासी परेशानी उठानी पड़ रही है।
पीने योग्य पानी की कमी का सबसे मुख्य कारण यह भी है कि भूमिगत जल का स्तर लगातार कम हो रहा है। जल का सबसे बड़ा स्रोत है वर्षा। चूंकि हिमाचल पहाड़ी राज्य है तो यहाँ वर्षा होने पर अधिकतर जल बहकर नदी नालों में चला जाता है। हम जल के इस स्रोत का बहुत कम हिस्सा उपयोग में ला पाते हैं। बात करे हम आज से 40 या 50 वर्ष पहले की तो जल के इस स्रोत का उपयोग करने के लिए हमारे पूर्वजों ने बहुत ही कारगर तरीका अपनाया हुआ था। जगह जगह उँची पहाड़ी एवं जगहों पर पोखरों ,जिसे कहीं कहीं कोफर या तालाब भी कहते हैं इन्हें बनाकर वर्षा के जल को इक्कट्ठा करना सबसे सरल तरीका था । फिर वह इक्कट्ठा किया हुआ जल धीरे धीरे भूमि में समाहित होकर पहाड़ी के तल में कहीं दूसरी जगह जल के स्रोत के रूप के निकलता था। उसी जल को वे लोग स्वयं के और पशुओं के पीने के काम मे लाते थे। परंतु अब लगातार हो रहे भवन निर्माण या अन्य विकास कार्यों की वजह से प्राचीन समय मे बनाए हुए उन सभी पोखरों का अस्तित्व ही नहीं गया है। आधुनिक पीढ़ी इन पोखरों का महत्व ही नहीं समझती है। इसीलिए अब जल भंडार भी कम हो रहे हैं ।
इसके लिए सरकार को विशेष कदम उठाने होंगे और ऐसे भूमिगत जल स्रोतों का संरक्षण करना होगा। इसके लिए सरकार द्वारा विशेष प्रयास किए जा रहे हैं । जैसे जल जीवन मिशन आदि। इसमें बहुत से ऐसे प्रोजेक्ट शुरू किए गए हैं जिनसे ऐसे प्राचीन बने पोखरों का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। कुछ विशेष स्थानों पर जहां आवश्यकता है वहां नए पोखर बनाने पर कार्य शुरु किए जा रहे हैं।
हर पंचायत में जल संरक्षण के लिए घरों में टैंक बनाने के लिए मनरेगा योजना में विशेष प्रावधान है।
हमें जल भण्डार की होती कमी की समस्या से निपटने के लिए जागरूकता अभियान एवं विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से प्रयास शुरू करने होंगे। अपनी पुरानी संस्कृति एवं पूर्वजों द्वारा अपनाई गई तकनीकों को अपनाकर भविष्य में आने वाली समस्या से निपट सकते हैं।