आईआईटी मंडी अब जान सकेंगे भूकंप के लिहाज से कितनी मजबूत हैं आपकी इमारतें, तकनीक की विकसित

भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील हिमालयी क्षेत्रों में कंकरीट की इमारतें कितनी मजबूत हैं, किस पैमाने तक झटके सह सकती हैं, इसका आकलन अब भूवैज्ञानिक कर सकेंगे। साथ ही समय रहते कमजोर इमारतों की मरम्मत कर इन्हें भूकंपरोधी बना सकेंगे। इससे जानमाल का नुकसान कम किया जा सकेगा। यह संभव होगा रैपिड विजुअल स्क्रीनिंग (आरवीएस) तकनीक से। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के शोधकर्ताओं ने इस तकनीक को विशेष तौर पर जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा और असम के क्षेत्रों के लिए विकसित किया है। हिमाचल के मंडी की इमारतों का अध्ययन करके प्रोटोटाइप तैयार किया है। क्या है आरवीएस तकनीक आरवीएस किसी इमारत के विजुअल इन्फार्मेशन से यह तय करता है कि वह सुरक्षित है या नहीं। या फिर क्या उसकी भूकंप सुरक्षा बढ़ाने के लिए किस तरह का तत्काल इंजीनियरिंग कार्य करना आवश्यक है। शोध के निष्कर्ष अमेरिका के बुलेटिन ऑफ अर्थक्वेक इंजीनियरिंग में प्रकाशित किए गए हैं। शोध प्रमुख सहायक प्रोफेसर, स्कूल ऑफ सिविल एवं एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग, आईआईटी मंडी डॉ. संदीप कुमार साहा और सह लेखक उनकी पीएचडी छात्रा यती अग्रवाल हैं। पीएचडी स्कॉलर यती ने बताया कि प्रस्तावित प्रक्रिया से पहाड़ी क्षेत्रों में कंकरीट से बनी इमारतों का भूकंप के संभावित खतरों के अनुसार वर्गीकरण करना संभव है। हिमालयी क्षेत्र में इमारतों का जल्द आकलन आवश्यक है। केवल इसलिए नहीं कि इस क्षेत्र में भूकंप का खतरा बना रहता है, बल्कि इसलिए भी कि पिछली दो शता

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